सहारनपुर। आज हम ऐसी बीमारी के बारे में बात करेंगे जिसे पहले जानलेवा समझा जाता था, और मरीजों को उनके हाल पर यूं ही छोड़ दिया जाता था। जी हां, ऐसा भी वक्त था जब खून से जुड़ी समस्याएं मरीज और परिवार के लिए अभिशाप से कम नहीं समझी जाती थीं। लेकिन अब वक्त बदल गया है। मेडिकल साइंस में काफी तरक्की हुई है और ल्यूकेमिया के मामलों में टारगेटेड थेरेपी के जरिए मरीजों के लिए बेहतर रिजल्ट लाए जा रहे हैं। मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल साकेत (नई दिल्ली) में हेमेटोलॉजी एंड बोन मैरो ट्रांसप्लांटेशन के कंसल्टेंट डॉक्टर फरहान नईम ने इस विषय पर विस्तार से जानकारी दी ।
ब्लड कैंसर, जिसे हेमटोलॉजिक दुर्दमता के रूप में भी जाना जाता है, जानलेवा बीमारियां होती हैं। इसमें रक्त कोशिकाओं के उत्पादन और फंक्शन पर असर पड़ता है जिसकी वजह से इम्यूनिटी कमजोर हो जाता है और कभी-कभी कम प्लेटलेट काउंट और हीमोग्लोबिन भी कम हो जाता है जिससे हाई इंफेक्शन का रिस्क हाई हो जाता है, ब्लीडिंग होती है, कमजोरी या थकान का कारण बनता है। अन्य लक्षणों में सिरदर्द, मसूड़ों में सूजन, हड्डियों में दर्द, हड्डी टूटना, बुखार, वजन कम होना और रात को पसीना आना होता है।
समय पर डायग्नोज और सही इलाज महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कुछ ब्लड कैंसर जैसे एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया (खासकर बच्चों में), हॉजकिन लिम्फोमा के मामले में क्यूर रेट काफी हाई होता है, लगभग 80-90 फीसदी होता है। ब्लड कैंसर के मामलों में कीमोथेरेपी एक बेहतर इलाज माना जाता है। हालांकि, टारगेटेड और इम्यूनोथेरेपी की मदद से अब ज्यादा स्पेसिफिक इलाज होता है और इसके साइड इफेक्ट भी कम होते हैं।
ज्यादातर मरीजों का इलाज टारगेटेड और इम्यूनोथेरेपी के साथ सिर्फ कीमोथेरेपी से ही हो जाता है लेकिन कुछ मामलों में बोन मैरो ट्रांसप्लांट की जरूरत पड़ती है। गंभीर और हल्की, दोनों स्थितियों का इलाज बोन मैरो या या स्टेम सेल ट्रांसप्लांट से किया जा सकता है। इसमें लिम्फोमा, ल्यूकेमिया, मायलोमा और हॉजकिन डिजीज और अन्य ब्लड डिसऑर्डर जैसे अप्लास्टिक एनीमिया, सिकल सेल एनीमिया और थैलेसीमिया शामिल हैं।
स्टेम सेल कलेक्शन के लिए अब किसी सर्जरी की आवश्यकता नहीं है और यह खून के माध्यम से ब्लड सैपरेट मशीनों का उपयोग करके किया जाता है। लिम्फोमा और मायलोमा जैसी कुछ बीमारियों में मरीज की अपनी कोशिकाओं से सिंपल ऑटोलॉगस ट्रांसप्लांटेशन की जरूरत होती है जबकि ल्यूकेमिया, अप्लास्टिक एनीमिया और थैलेसीमिया में स्टेम सेल डोनर की आवश्यकता होती है।